Pune January 03: RSS mega gathering Shiv Shakti Sangam held at Pune was attended by 1,58,722 RSS Swayamsevaks in their Ganavesh (Sangh Uniform), which has set a new milestone as one of ever largest gathering of RSS Swayamsevaks in its history on Sunday evening.
![IMG-20160103-WA0032]()
RSS Sarasanghachalak Mohan Bhagwat addressed the huge gathering.
![IMG-20160103-WA0048]()
Earlier, spectacular Ghosh Pradarshan was held during the Shiv Shakti Sangam. A special Ghosh tune Shivashakti was played on the occasion.
The event was webcasted LIVE in RSS websites www.rss.org and www.samvada.org
Maharashtra Chief Minister Devendra Fadnavis, Pune’s Guardian Minister Girish Bapat, Pune’s MP Anil Shirole, Union Minister Prakash Javadekar, MP Harishchandra Chavan, Arun Sable, Water Resources Minister Girish Mahajan, Rural Development Minister Pankaja Munde, Public Works Minister Chandrakantdada Patil, Tribal Welfare Minister Vishnu Sawara, Education Minister Vinod Tawade, Minister of State for Home Ram Shinde, Social Justice Minister Dilip Kamble, MLA Medha Kulkarni, Vijay Kale, Lakshman Jagtap, Bhimrao Tapkir, Madhuri Misal, Yogesh Tilekar, Sadashiv Khade were present on the ceremony.
Maharashtra Bhushan Shivshahir Babasaheb Purandare, Vishwanath Karad, author D. M. Mirasdar, Prof. S. B. Mujumdar, Dr. Ashok Kukade, Prof. Aniruddha Deshpande, Rahul Solapurkar, Ravindra Mankani graced the occasion.
Shri Shankaracharya of Dwarika Peeth Swami Trilokteerth, Gyani Charansinghji, Shri Kalsiddheshwar Maharaj, Acharya Shri Vishwakalyan Vijayshri Maharaj, Shri. Maruti Maharaj Purekar, Shri. Kishan Maharaj Purekar, Shri. Bhaskargiri Maharaj, Shri. Balyogi Oturkar Maharaj, Shri. Shanti Giri Maharaj, Shri. Makran Dasji Maharaj, Shri. Farashiwale Baba, Shri. Kalki Maharaj, Shri. Narayan Maharaj of Narayanpur, Rashtrasant Bhaiyyuji Maharaj, Shri. Bandatatya Karadkar were present on the occasion.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारी परंपरा शिवत्व की है, जिसे शक्ति का साथ मिले तो विश्व में हमें हमारी पहचान मिलेगी. चरित्र ही हमारी शक्ति है. शीलयुक्त शक्ति के बिना विश्व में कोई कीमत नहीं है. इस महत्तम उद्देश्य के लिए ही शिवशक्ति संगम अर्थात् सज्जनों की शक्ति के प्रदर्शन की आवश्यकता है. सरसंघचालक जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत की ओर से रविवार को पुणे के पास जांभे, मारुंजी एवं नेरे गांवों की सीमा पर आयोजित शिवशक्ति संगम के महासांघिक में संबोधित कर रहे थे. पश्चिम क्षेत्र संघचालक डॉ. जयंतीभाई भाडेसिया, प्रांत संघचालक नानासाहेब जाधव, प्रांत कार्यवाह विनायकराव थोरात मंच पर उपस्थित थे.
अपने लगभग 45 मि. के भाषण में सरसंघचालक जी सामाजिक परिस्थिति के बारे में बताते हुए संघ की स्थापना का महत्त्व तथा कार्य का विवेचन किया. उन्होंने कहा कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के 125वें जयंति वर्ष में, स्त्री शिक्षा की शुरूआत करने वाली सावित्रीबाई फुले की जयंति के दिन पर विराट शिवशक्ति संगम प्रशंसास्पद है. शिवशक्ति कहने पर हमें छत्रपति शिवाजी महाराज का स्मरण आता है. अपने स्थान पर उचित राज करने वाला यह पहला राजा था. सीमित राज्य में राष्ट्र का विचार करने वाला यह राजा था. धर्म का राज्य चले, यह सोचने वाले आदर्श हिंदवी स्वराज्य के शिवाजी संस्थापक थे. उनके द्वारा किया गया संगठन तत्व निष्ठा पर निर्भर है. इसी तत्व निष्ठा के कारण हमने भगवा ध्वज को गुरू माना है. निर्गुण निरामय के अलावा तत्व का आचरण संभव नहीं है. तत्वों में सद्गुण आवश्यक है. वह काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है. संघ के छह में से शिवराज्याभिषेक का अपवाद कर कोई उत्सव वैयक्तिक नहीं है. शिवाजी महाराज का स्मरण अर्थात् चरित्र, नीति का स्मरण है. महापुरूषों का स्मरण करते समय उन्होंने यह उद्योग कैसे किया, शक्ति कैसे उत्पन्न होती है, इसका स्मरण करना आवश्यक है. हमारी परंपरा शिवत्व की है. सत्य, शिव, सुंदरम हमारी संस्कृति है. समुद्र मंथन से जो हलाहल निर्माण हुआ, उसकी बाधा विश्व को ना हो इसलिए जिन्होंने प्राशन किया, वे नीलकंठ हमारे आराध्य दैवता हैं. उनके आदर्श की तरह हमारी यात्रा जारी है. शिवत्व की परंपरा शाश्वत अस्तित्व के तौर पर जानी जाती है. शिव को शक्ति का साथ मिलना चाहिए. शिव को शक्ति के सिवा समाज नहीं जानता. विश्व में शक्तिमान राष्ट्रों की बुराई पर चर्चा नहीं होती. वे हम चुपचाप सह लेते हैं. लेकिन अच्छे, परंतु शक्ति में कम राष्ट्रों की अच्छी बातों पर चर्चा नहीं होती. उन राष्ट्रों की अच्छी सभ्यता को बहुमान नहीं मिलता.
उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर के जापान में अनुभव का वर्णन करते कहा कि उस व्याख्यान में कई छात्र नहीं आए, क्योंकि गुलाम राष्ट्र के नेता का भाषण हम क्यों सुनें, यह छात्रों का सवाल था. हमारे पास सत्य होने के बाद भी हम उसे बता नहीं सकते थे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, युद्ध में विजय के बाद और अणु परीक्षण के बाद हमारी प्रतिष्ठा नहीं बढ़ी. देश की शक्ति बढ़ती है, तब सत्य की भी प्रतिष्ठा बढ़ती है. इसके लिए शक्ति की नितांत आवश्यकता है. शक्ति का अर्थ मान्यता है. शक्तिसंपन्न राजा भी शीलसंपन्न विद्वानों के सामने नतमस्तक होते हैं. यह हमारी परंपरा है. हमारे यहां त्याग से, चरित्र से शक्ति जानी जाती है. शक्ति का विचार शील से आता है. इसके लिए शिलसंपन्न शक्ति की आवश्यकता है और शीलसंपन्न शक्ति सत्याचरण से बनती है.
डॉ. भागवत जी ने कहा कि शीलसंपन्न विश्व में जीवों के विभिन्न प्रकार मिलते है. अस्तित्व की एक ही बात है. विभिन्नता से एकता स्वीकारने के लिए समदृष्टी से देखने की आवश्यकता है. सत्य में भेद के लिए, विषमता के लिए कोई स्थान नहीं है. सबको हमारे जैसा देखना चाहिए. चरित्र से ही व्यक्तिगत और सामाजिक शक्ति बनती है. भेदों से ग्रस्त समाज की प्रगति नहीं होती. सुगठित, एक दूसरे की चिंता करने वाला समाज हो, तभी समाज का हित साध्य होता है. उन्होंने इजराइल के स्वाभिमान एवं विकास का उदाहरण दिया. इस देश द्वारा 30 वर्षों में की हुई प्रगति का मर्म प्रकट किया. संकल्पबद्ध समाज सत्य की नींव पर खड़ा हो, तो क्या होता है, इस बात का यह देश उदाहरण है. सभी लोग मेरे है, ऐसा कहने पर मनुष्य धर्म से खड़ा रहता है. धर्म यानि जोड़ने वाला, उन्नति करने वाला, मूल्यों का आचरण करना यानि धर्म, यह आचरण सत्यनिष्ठता से आता है.
संविधान लिखते समय डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था कि राजतिक एकता आई है, किंतु आर्थिक और सामाजिक एकता के बिना वह टिक नहीं सकती. भागवत जी ने कहा कि हम कई युद्ध दुश्मन के बल के कारण नहीं, बल्कि आपसी भेद के कारण हार गए. भेद भूलाकर एक साथ खड़े न हो तो संविधान भी हमारी रक्षा नहीं कर सकता. व्यक्तिगत और सामाजिक चरित्रनिष्ठ समाज बनना चाहिए. सामाजिक भेदभावों पर कानून में प्रावधान कर समरसता नहीं हो सकती. समरसता आचरण का संस्कार करना पड़ता है, जिसके लिए समरसता का संस्कार करने की आवश्यकता है. तत्व छोड़कर राजनीति, श्रम के बिना संपत्ति, नीति छोड़कर व्यापार, विवेक शून्य उपभोग, चारित्र्यहीन ज्ञान, मानवता के बिना विज्ञान और त्याग के बिना पूजा सामाजिक अपराध है, ऐसा महात्मा गांधी कहते थे. इन अपराधों का निराकरण करना ही संपूर्ण स्वराज्य, यह उनका विचार था. इसलिए उनके विचारों की संपूर्ण स्वतंत्रता मिलना अभी भी बाकी है. इस तरह की संपूर्ण स्वतंत्रता, समता और बंधुता वाले समाज का निर्माण करना संघ का ध्येय है और इसके लिए संघ की स्थापना हुई है.
उन्होंने कहा कि शिवत्व और शक्ति की आराधना होने के लिए प. पू. डॉ. हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना की. राष्ट्रोद्धार के लिए कई उपक्रमों में सहभागी होकर अपना कर्तव्य निभाया. संघ की स्थापना से पूर्व और बाद भी उन्होंने सभी आंदोलनों में सहभागी होकर कारावास भी भुगता. सभी प्रकार की विचारधाराओं से उनका परिचय था. गुणसंपन्न समाज की निर्मिती के अलावा विकल्प नहीं है, यह उन्होंने जान लिया था. इसके लिए उन्होंने उपाय खोजा था. सबको एक साथ बांधने वाला धागा हिंदुत्व है, यह उन्होंने जान लिया था. सबके लिए कृतज्ञता व्यक्त करने वाला मूल्य उन्होंने बताया था. मातृभूमि के लिए आस्था यह हिंदू समाज का स्वभाव है. परंपरा से आई हुई यह आस्था है. इसके आधार पर संस्कृति बढ़ती है, पुरखों का गौरव होता है. आज विश्व को इसकी आवश्यकता है. भारतीय मूल्यों की प्रतिष्ठापना करने हेतु संगठन की आवश्यकता है. राष्ट्रीय चरित्र वाले समाज निर्माण करना और देश को परम वैभव प्राप्त करवाना, यह संघ का कार्य है. किसी भी प्राकृतिक विपत्ति के समय आगे आने वाला स्वयंसेवक यह संघ की पहचान है. अपने हित का विचार छोड़कर समाज के तौर पर निरालस, निस्वार्थ सेवा करने वाला अर्थात् संघ स्वयंसेवक. यह गर्व का नहीं, अपितु 90 वर्षों से संघ जो कर रहा है, उस प्रयोग का फल है. नेता, सरकार पर देश नहीं बढ़ता, बल्कि चरित्रसंपन्न समाज पर वह टिका रहता है. चरित्रसंपन्न व्यक्ति के वर्तन से ही समाज का परिवर्तन होता है. शिव-शक्ति संगम अर्थात् वैभव प्रदर्शन नहीं है, बल्कि समाज परिवर्तन के लिए सही रास्ता है. देश प्रतिष्ठित, सुरक्षित न हो तो व्यक्तिगत सुख की कीमत नहीं है. सभी जिम्मेदारियां संभालकर समाज सेवा करने वाली शक्ति अर्थात् संघ का कार्य. समाजहित के इस कार्य में सब सक्रिय हों.
प्रांत कार्यवाह विनायकराव थोरात ने प्रास्ताविक में संघ के कार्य की जानकारी दी. सूखाग्रस्तों के लिए संघ, जनकल्याण समिति को आर्थिक सहायता करने का आह्वान किया. सूखा निवारण के कार्य में प्रत्यक्ष सहभागी होने के लिए 022-33814111 पर मिस कॉल करने का आह्वान किया. सुनील देसाई तथा संदीप जाधव ने सूत्रसंचालन किया.
सभी क्षेत्रों के गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति
शिवशक्ति संगम के लिए समाज के विभिन्न घटकों से गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही. तीन बजे के आसपास विशेष अतिथि कार्यक्रमस्थल पर आना शुरू हुए. विभिन्न पीठों के धर्माचार्य़, राजनैतिक नेता, कला, सांस्कृतिक क्षेत्र के दिग्गज और उद्योजक बड़ी संख्या में उपस्थित थे, यह कार्यक्रम का एक आकर्षण था. विशेष अतिथियों के लिए स्वतंत्र चार एवं धर्माचार्यों के लिए अलग प्रवेशद्वार एवं प्रबंध किए गए थे. इस प्रवेशद्वार पर संघ के कार्य एवं सेवाकार्यों की जानकारी प्रदान करने वाली सीडी, तिलगुल बड़ी, पानी की बोतल और शरबत का पैक देकर आमंत्रितों का स्वागत किया गया. इन पांचों प्रवेशद्वारों पर संघ परिवार के विभिन्न संस्थाओं से 140 से अधिक पदाधिकारी – स्वागत के लिए उपस्थित थे. इनमें सभी महिला पदाधिकारियों ने एक ही रंग की साड़ियां पहनी थीं.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस, पुणे जिले के पालकमंत्री गिरीष बापट, पुणे के सांसद अनिल शिरोले, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर, सांसद हरिश्चंद्र चव्हाण, अरूण साबले, महाराष्ट्र भूषण शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे, विश्वनाथ कराड, लेखक द. मा. मिरासदार, शां.ब. मुजूमदार, डॉ. अशोक कुकडे, अनिरूद्ध देशपांडे, राहूल सोलापूरकर, रवींद्र मंकणी, उद्यमी अभय फिरोदिया, अनिरूद्ध देशपांडे, अतुल गोयल, धर्माचार्य द्वारिकापीठाधिश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी त्रिलोकतीर्थ, ज्ञानी चरण सिंह जी, कालसिद्धेश्वर महाराज, आचार्य विश्वकल्याण विजयश्री महाराज, मारूती महाराज पुरेकर, किसन महाराज पुरेकर, भास्करगिरी महाराज, बालयोगी ओतुरकर महाराज, शांती गिरीमहाराज, मकरंद दासजी महाराज, फरशीवाले बाबा, कलकीमहाराज, नारायणपूरचे नारायण महाराज, राष्ट्रसंत भैय्यूजी महाराज, ह.भ.प. बंडातात्या कराडकर आदि गणमान्य उपस्थित थे.
![Shiv Shkti Sangam Pune (8)]()