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भारत विभाजन यह स्थापित सत्य नहीं |इसको ”स्थापित सत्य ”क्यों माना जाए ?

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By Vivek Bansal
जिस तरह स्वाधीनता से पहले प्रत्येक राष्ट्रभक्त के लिए स्वाधीनता की भावना प्रेरणा का मुख्य स्त्रोत हुआ करती थी उसी तरह स्वाधीनता के बाद अखण्ड भारत का स्वप्न प्रत्येक राष्ट्रभक्त के लिए प्रेरणा का मुख्य स्त्रोत होना चाहिए था और इस स्वप्न को साकार करने के लिए उसे सतत क्रियाशील रहना चहिए |
परन्तु अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि कुछ लोगो को छोड़कर आज जनता अखण्ड भारत का विचार ही नहीं करती |इसका कारण यह है कि भारत विभाजन को स्थापित सत्य मान लिया गया है | लोग कहते है कि भारत का विभाजन एक दम गलत है, यह नहीं होना चाहिए था , परन्तु अब क्या किया जा सकता है ? विभाजन तो हो गया| अब फिर से भारत को अखण्ड थोड़े ही किया जा सकता है | इसी विचार के कारण लोग विभाजन और अखण्ड भारत के बारे में सोचते ही नहीं | इसलिए सबसे पहले लोगो के मनो में इस ” स्थापित सत्य ” वाली बात को निकालना होगा | आइये, इतिहास की कुछ ” स्थापित सत्य ” दिखनेवाली बातो के बारे में विचार किया जाए |
1971
सैकडो वर्षों पहले यहूदियों को उनके देश इजराइल से विस्थापित होना पड़ा | एक दृष्टि से देखा जाए तो उनका यह विस्थापन ” स्थापित सत्य ” था | परन्तु यहूदियों कि प्रचंड इच्छाशक्ति ने इस ” स्थापित सत्य ” को बदल दिया और आज वे अपने इजराइल में रहते है |
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी का विभाजन हो गया | इतनी सख्ती थी कि अब यह विभाजन सदैव के लिए है ऐसा लगने लगा था | परन्तु आज जर्मनी फिर से अपने अखण्ड रूप में है |
कुछ वर्षों पहले तक सोवियत संघ विश्व की दो महाशक्तियों में से एक था | आज उसके अनेक टुकड़े हो चुके है और इस तरह सोवियत संघ ” भूतपूर्व ” का दर्जा प्राप्त कर चूका है |
1970 से पहले बंगलादेश के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था | 1971 में वह अस्तित्व में आ गया |
भारत विभाजन के कुछ वर्ष पहले तक विभाजन हो सकता है, यह बात असंभव लगती थी | तभी तो पंडित जवाहर लाल नेहरु विभाजन कि मांग को ” विलक्षण मूर्खता ” ( Fantastic nonsense ) कहा और यह कहकर इस मांग कि खिल्ली उडाई कि ” जो विभाजन की बात करते है वे मूर्खो के स्वर्ग में रहते है ” ( Those who talk of partition live in paradise of fools ). परन्तु 1947 में भारत का विभाजन हो गया |
इतिहास ऐसी असंभव लगनेवाली बातो के संभव होने से भरा पड़ा है | फिर भारत विभाजन को  ” स्थापित सत्य ” क्यों मान लिया जाए ? इच्छाशक्ति और प्रयत्नों के आधार पर इसे भी बदला जा सकता है | यही विचार हर भारतवासी का होना चहिए I

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